2 जून की रोटी क्यों है इतनी मशहूर? जानिए इस कहावत का असली मतलब, तारीख से नहीं है कोई लेना-देना!

2 जून की रोटी

2 जून की रोटी या ‘दो जून की रोटी’ भारतीय समाज में बेहद लोकप्रिय कहावत है, जो सिर्फ खाने या किसी तारीख से नहीं, बल्कि जीवन के संघर्ष और बुनियादी जरूरतों से गहराई से जुड़ी है। आइए, जानते हैं इस कहावत के इतिहास, असली अर्थ और सामाजिक महत्व के बारे में विस्तार से।

क्या है ‘दो जून की रोटी’ का असली मतलब?

  • दो जून की रोटी’ का अर्थ है—दिन में दो बार, यानी सुबह और शाम का भोजन मिलना।
  • यहां ‘जून’ शब्द अवधी भाषा से आया है, जिसमें इसका मतलब ‘समय’ या ‘वक्त’ होता है।
  • इस कहावत के जरिए यह बताया जाता है कि दो वक्त का खाना मिलना हर किसी के नसीब में नहीं होता, खासकर गरीब और श्रमिक वर्ग के लिए।

कहावत का इतिहास और साहित्यिक महत्व

  • यह कहावत उत्तर भारत, खासकर अवध क्षेत्र में प्रचलित अवधी भाषा से निकली है।
  • पुराने समय में जब देश में गरीबी और संसाधनों की कमी थी, तब दो वक्त का खाना जुटाना ही सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी
  • मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में ‘दो जून की रोटी’ का उल्लेख कर इसे आमजन की पीड़ा और संघर्ष का प्रतीक बना दिया।

क्यों नहीं जुड़ी है तारीख से?

  • कई लोग मानते हैं कि ‘2 जून की रोटी’ का मतलब साल के 2 जून को मिलने वाली रोटी है, लेकिन यह गलतफहमी है।
  • ‘जून’ का अर्थ यहां ‘समय’ है, न कि महीना या तारीख।
  • सोशल मीडिया पर 2 जून की तारीख आते ही इस कहावत से जुड़े मीम्स और चुटकुले वायरल होने लगते हैं, जबकि इसका असली अर्थ दो वक्त के खाने से है।

सामाजिक और आर्थिक संदर्भ

  • यह कहावत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं होती।
  • 2017 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता।
  • सरकारें गरीबी मिटाने के लिए योजनाएं चला रही हैं, लेकिन ‘दो जून की रोटी’ आज भी संघर्ष, मेहनत और किस्मत का प्रतीक बनी हुई है।

किसानों और मेहनतकशों की अहमियत

  • भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसानों की मेहनत से ही लोगों को ‘दो जून की रोटी’ मिलती है।
  • किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना और उनका सम्मान करना भी उतना ही जरूरी है, जितना खुद भोजन की कद्र करना

निष्कर्ष

दो जून की रोटी’ सिर्फ खाने की बात नहीं, बल्कि यह मेहनत, संघर्ष, गरीबी और सामाजिक असमानता का प्रतीक है। यह कहावत हमें याद दिलाती है कि दो वक्त का खाना मिलना भी किसी के लिए सौभाग्य की बात हो सकती है। इसलिए, जब भी यह कहावत सुनें, इसके गहरे सामाजिक और ऐतिहासिक अर्थ को जरूर समझें।

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